बुधवार, 9 मई 2012

भूमि के बिना भी ये महिलाएं मशरूम उगा रही हैं

जगदलपुर। भूमि के बिना खेती संभव नहीं है, लेकिन इसे संभव कर दिखाया है दक्षिण बस्तर जिले के कासौली राहत शिविर में निवासरत ‘मां शरदा स्वसहायता समूह’ की महिलाओं ने।

यह महिलाएं अपने बुलंद हौसलों एवं कड़ी मेहनत से न केवल बंद कमरे में मशरूम की खेती कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं, बल्कि भूमिहीन लोगों के लिए एक मिशाल भी पेश कर रही हैं

 धुर नक्सल प्रभावित दक्षिण बस्तर जिला, जहां नक्सलियों के आतंक एवं हिंसा से त्रस्त सैकड़ों गांवों के लोग अपना घर-बार खेत-बाड़ी छोड़कर शिविरों में अपना गुज-बसर कर रहे हैं, शिविर में रह रहे लोगों को राज्य सरकार जहां मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा रही है, वहीं इन ग्रामीणों को अपने पैरों पर खड़े होने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने विभिन्न व्यवसाय मूलक प्रशिक्षण एवं सहायता मुहैया करा रही है। इस कड़ी में दक्षिण बस्तर जिले के गीदम विकासखण्ड स्थित कासौली राहत शिविर में रहनेवाली महिलाएं मलको, सिमरी,  राधा, कुमली आदि ने ‘मां शारदा स्वसहायता समूह’ का गठन किया और बिना भूमि के मशरूम उत्पादन का निर्णय किया। इस समूह को विशेष राहत योजना के तहत शासन द्वारा आवश्यक प्रशिक्षण एवं सुविधाएं मुहैया कराई गईं और आज इस समूह की महिलाएं बिना भूमि के केवल एक बंद कमरे में मशरूम का विपुल उत्पादन कर न केवल आत्मनिर्भर हुई हैं, बल्कि सभी को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर दिया है।

समूह की अध्यक्ष श्रीमती मलको कहती हैं कि उन्हें नक्सल हिंसा के कारण अपना घर, खेत-बाड़ी को छोड़कर सुरक्षा हेतु शिविरों में आना पड़ा। यहां वे लोग दैनिक मजदूरी कर जीवन निर्वाह कर रहे थे, लेकिन अब मशरूम उत्पादन से उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी है। वे बताती हैं कि कम पूंजी और मात्र 20 से 25 दिनों में मशरूम का उत्पादन होने लगता है। मशरूम की खेती से समूह के खाते में 15 हजार रुपए भी जमा हो गए हैं।

कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मशरूम पौष्टिकता की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है, इसमें प्रोटीन, रेशे एवं फॉलिक एसिड के तत्व समाहित होते हैं, जो आमतौर पर अनाज एवं सब्जियों में कम ही पाए जाते हैं। इससे अचार, मुरब्बा एवं सूप पाउडर बनाया जाता है, साथ ही दवाइयों में भी इसकी खासी मांग है। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें