सोमवार, 16 अप्रैल 2012

मशरूम की खेती

वर्तमान समय में बढती  हुई जनसंख्या के कारण लगातार कृषि जोत भूमि घटती जा रही है जिसके कारण पौष्टिक खाद्य पदार्थ का उत्तपादन कर पाना एक समस्या बनता जा रहा है | इस  परिस्थिति में मशरूम की खेती करना आवश्यक समझा जाने लगा है | क्योकि मशरूम में प्रोटीन , विटामिन एवं खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है तथा इसकी खेती के लिए खेत की जरूरत भी नहीं पड़ती है, बस एक छायादार कमरे के अन्दर चाहे वो घास का हो या कच्चे या पक्के मकान का एक कमरा हो, बस हवा का आवागमन एवं पानी की सुविधा हो बस हम सुगमता पूर्वक मशरूम की खेती  कर सकते है | इसकी खेती की एक और विशेषता होती है की यह अन्य सब्ब्जी या अनाज की भाति अधिक समय नहीं लेती है |  यदि बिज उपलब्ध हो तो ३० दिन के अन्दर इसकी फसल तैयार हो जाती है |  और अगर हम इसका तापमान नियंत्रित कर सके तो हम इसकी खेती सालभर कर सकते है |
और इसकी खेती करना भी बहुत आसन है बस हमें गेहू का भूसा, धान की पुआल, ज्वार या फिर बाजरे का डंठल चाहिए | हमें  भूसे को साफ पानी से भिगान है और उस भीगे हुए भूसे को एक पालीथीन में भरना है और भूसा भरते समय ही एक लेयर भूसे का एवं उसके ऊपर कुछ बिज मशरूम के फिर एक लेयर भूसे का  और एक लेयर मशरूम के बिज का इसी तरह कर के  रख देना है ताकि भूसा चारो तरफ फ़ैल ना सके और उस पालीथीन में कुछ सुराख़ भी कर देना चाहिए जिससे की हवा आ, जा सके और प्रतिदिन भूसे पर साफ पानी का छिडकाव करना चाहिए | बस ३० दिनों के अन्दर मशरूम तैयार हो जायेगा |
हमारे देश में बहुत से किसान इन फसल अवशेष को जला देते है जिससे की वायु में प्रदुषण बढ़ जाता है और पर्यावरण असंतुलित हो जाता है जिसका प्रभाव प्रकृति में रहने वाले अन्य जीवो पर पड़ता है | अतः मशरूम की खेती  करने से पर्यावरण को सुरछित रखा जा सकता है | मशरूम उत्तपादन के पश्चात् जो भी फसल का अवशेष बचाता है उसका उपयोग हम जैविक खाद बनाने में ला सकते है एवं अपने खेतो में डाल सकते है | जिससे की खेत की उरवरा शक्ति में में ब्रिधि होगी, तथा खेत में जीवाष्म की मात्रा बढ़ेगी| इस तरह करने पर हमारे खेत की भौतिक एवं रासायनिक संरचना में सुधार होता है |

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